चंद्रकांता-कविता-मेह-तुम-टूटकर-बरसो
मेह तुम टूटकर बरसो नीरद की दहलीज़ लांघकर सागरों से फट पड़ो घट-घट मे भर दो प्राण कण-कण कों कर
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
मेह तुम टूटकर बरसो नीरद की दहलीज़ लांघकर सागरों से फट पड़ो घट-घट मे भर दो प्राण कण-कण कों कर
Continue readingहम औरतें हम औरतें हमेशा भीड़ से घिरी रहती हैं जैसे मधु-मक्खियों से घिरे रहते हैं सुमन अहंकार इतना कि
Continue readingआलाप दिमाग में घने अंधेरों नें कसकर पाँव जमा रखे हैं एक भी सुराख़ नहीं है जो छटांक भर रोशनी
Continue readingचंद्रकांता गीत ‘पगडंडियां’ तेरे इश्क़ की पगडंडियां मैं उड़ती हूँ रेत बनकर तड़पती हूँ इक प्यास सी होकर बेपरवाह
Continue readingOctober Movie 2018-फूल हंसो, गंध हंसो, प्यार हंसो तुम हंसिया की धार, बार-बार हंसो तुम . मालूम नहीं
Continue readingपास आने दो जरा मोहब्बतों कोबहक जाने दो जरा सी चाहतों को ये जो लब हैं तेरे मेरेहैं इतने दूर
Continue readingएक पंक्ति लिखती हूँ और अक्सर मिटा देती हूँ नि-रं-कु-श सत्ता के भय से फिर अपने भीतर के बचे हुए
Continue readingक्या वाकई आप सोचते हैं कि प्रेम पढ़कर आत्मसात कर लेने वाली कोई वस्तु है ? मैंने जब-जब अंतरंग होकर
Continue readingBandini 1963 – बंदिनी एक ऐसा प्रेमगीत है जहां, प्रेम सुविधा का नहीं समर्पण और संघर्ष का नाम है ।
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