Lalitya Lalit डॉ. लालित्य ललित – “पांडेय जी के किस्से और उनकी दुनिया”

Lalitya Lalit डॉ. लालित्य ललित – “पांडेय जी के किस्से और उनकी दुनिया”

व्यंग्य संग्रह: पांडेय जी के किस्से और उनकी दुनिया हिन्दी व्यंग्यकार

व्यंग्यकार: डॉ. लालित्य ललित

प्रकाशक: आद्विक प्रकाशन 

“पांडेय जी के किस्से और उनकी दुनिया” डॉ. लालित्य ललित का अद्यतन व्यंग्य संग्रह है आद्विक प्रकाशन से आया है। संग्रह की प्रस्तुति अच्छी है विनय माथुर का आवरण डिजाइन मनभावन है। प्रूफ रीडिंग व्योमा मिश्रा की है। व्यंग्यकार ने समर्पण में लिखा है- ‘उन तमाम पाठकों को ..जिनका मुझ पर विश्वास है और जो खोज खोज कर पढ़ते हैं मेरे व्यंग्य।’  तो ललित जी को पसंद करने वाले तमाम पाठक खुश हो सकते हैं।  पुस्तक की प्रस्तावना अनवरत पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ व्यंग्यकार दिलीप तेतरवे द्वारा लिखी गई है। पुस्तक में कुल तेईस व्यंग्य हैं। जिनमें लोन, रोड रेज, एलटीसी, बारिश, प्रेम, फेसबुक, रिक्शावाला, ड्राई फ्रूट, वर्क फ्राम होम जैसे मुद्दे हैं जिन्हें हास्य और मनोविनोद की चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत किया गया है।  

                          ललित जी किस्सागोई की शैली में व्यंग लिखते हैं मूल किस्सों में छोटे बड़े किस्से और उन् किस्सों में हास्य मिश्रित व्यंग्य छिपा रहता है। लिखते हुए वे सभी को अपने लपेटे में ले लेते हैं यहाँ तक की अपने केन्द्रीय चरित्र पांडेय जी को भी नहीं बख्शते। उनका केंद्रीय चरित्र पांडेय जी अच्छाइयों और खामियों से गुंथा वह आम आदमी हैं जो सुपरमैन तो नहीं है लेकिन अपने जीवन का बेबाक नायक है। व्यंग्य के मध्य में कविताई करना उनका दिलचस्प लेखकीय शगल रहता है। लेखन की किस्म कोई भी हो मुहावरों लोकोक्तियों का प्रयोग हमें हमेशा आकर्षित करता है। यह संग्रह भी उसका अपवाद नहीं। 

बहरहाल, व्यस्तता के चलते हम सभी व्यंग्य तो नहीं पढ़ सके किंतु जो पढ़ा उनमें कुछ प्रसंग हमें बहुत रोचक लगे जैसे  ‘पांडे जी रोड रेज और किस्से जहान के’ व्यंग्य की कुछ पंक्तियां हैं – 

‘सड़क पर निकलना आजकल ऐसे है जैसे किसी युद्ध पर निकलना हो कुछ दिनों बाद पत्नी आप की आरती करती मिलेगी कि मेरे योद्धा लौट कर आना कहीं वीरगति को प्राप्त ना होना।’ 

ये पंक्तियाँ प्रशासन की संवेदनहीनता और आम आदमी की विवशता को कितनी सघनता से उघाड़ रही हैं। ‘पांडेय जी और गृह प्रवेश के मजे’ रचना से व्यंग्य का एक और टुकड़ा पढ़िए- 

“देखिए ऐसा है कि खुशियाँ कहीं से टपकती नहीं। उसको बुलाना पड़ता है सीटी बजाकर।” 

कर्मठता का संदेश देते और समाज, सत्ता व प्रशासन की अवसरवादिता को झकझोरते प्रसंग इस संग्रह में आपको जहाँ तहाँ मिल जाएंगे। आलोचना से परे कोई लेखक नहीं। डॉ. ललित के लेखन के लिए हम एक बात अवश्य ही कहेंगे किस्सागोई की जिस तरह की उनकी शैली है उसके साथ सपाटबयानी का जोखिम लगातार साथ चलता रहता है।  

आद्विक प्रकाशन और डॉ. लालित्य ललित को बधाई इस नए व्यंग्य संग्रह के लिए ।

चंद्रकांता